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कविता

बिखरना

रघुवीर सहाय


कुछ भी रचो सब के विरुद्ध होता है
इस दुनिया में जहाँ सब सहमत हैं
क्या होते हैं मित्र कौन होते हैं मित्र
जो यह जरा-सी बात नहीं जानते
अकेले लोगों की टोली
देर तक टोली नहीं रहती
वह बिखर जाती है रक्षा की खोज में
रक्षा की खोज में पाता है हर एक अपनी-अपनी मौत


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